Harivansh Rai Bachchan Biography, Poem in Hindi
हिंदी साहित्य के छाया वाद के जनक श्री हरिवंश राय बचन जी जीवन के बारे में जानेगे –
हरिवंश राय बच्चन के जीवन का साहित्यिक परिचय
प्रारंभिक जीवन ( Early Life of Harivansh Rai Bachchan) –
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवम्बर 1907 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ जिले के बापू पट्टी गांव में हुआ था हरिवंश राय बच्चन का पूरा नाम हरिवंश राय श्रीवास्तव उर्फ़ बच्चन था। उनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव था और माता का नाम सरस्वती देवी था। वह एक कायस्थ परिवार से थे छोटे उम्र में उन्हें बच्चन के नाम से पुकारा जाता था। जिसका अर्थ बच्चा होता है। माता पिता के प्यार से लिया जाने वाला नाम बच्चन जो आगे चलकर उनका उपनाम बन गया।
बच्चन जी का शिक्षा-दीक्षा (Harivansh Rai Bachchan Education ) –
उनकी प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद के म्युनिसिपल स्कुल कशी से हुयी उसके वाद उन्होंने अपने स्नातक की परीक्षा 1929 ईस्वी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण किये।
1938 ईस्वी इन्होने इलाहबाद विश्वविद्यालय से ही अंग्रेजी विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की 1939 ईस्वी में बच्चन साहब इलाहबाद विश्वविद्यालय से ही बी-टी -सी की उपाधि प्राप्त किये। 1942 ईस्वी से 1952 ईस्वी तक ये इलाहबाद विश्वविद्यालय में ही अंग्रेजी अध्यापक पद पर कार्यरत रहे। इन्होने अपने 1954 ईस्वी में पी एच डी की उपाधि इंग्लॅण्ड के केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से प्राप्त किये।
उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर भारत उन्हें विदेश मंत्रालय हिंदी विषेशज्ञ के रूप में नियुक्त किये गए। सन 1966 ईस्वी में हरिवंश राय बच्चन जी राज्य सभा के सदस्य के रूप में मनोनीत किये गए।
उनके पारिवारिक जीवन ( family life of Harivansh Rai Bachchan ) –
1926 में हरिवंश राय बच्चन का विवाह श्यामा से हुआ और जब श्यामा बचन की मृत्यु हो गया तब हरिवंश राय बच्चन ने 1941 में तेजी बचन से दूसरी बिवाह किये और उनके दो संतान अमिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन हैं।
प्रमुख़ रचनाएँ –
उन्होंने (काव्य संग्रह ) मधुसाला 1935 में मधुबाला 1938 में मधुकलस 1938 में उसके बाद निशा -निमंत्रण ,आकुल -अंतर एकांतसंगीत मिलनयामिनी सतरंगनी नए पुराने झरोखे टूटी -फूटी करियाँ (आत्मकथा) क्या भूलू क्या याद करूँ नीड़ निर्माण फिर ,आरती और अंगारे बसेरे से दूर , दस द्वार से सौपान तक , आदि है
साहित्यिक विशेषता –
हरिवंश राय बच्चन जी का साहित्यिक प्रतिभा विविधोन्मुखी था। इनकी रचनाओं में व्यक्ति वेदना ,राष्ट्र चेतना ,और जीवन दर्शन के स्वर मिलते हैं। राजनैतिक जीवन के ढोंग ,सामाजिक असमानता और कुरूतियो का वयंग किया है हरिवंश राय बच्चन जी प्रेम सौंदर्य एवं मस्ती को जीवन के अभिन्न अंग मानते हैं ,बच्चन जी अपनी मानवता वादी भावना के कारन न केवल प्राणी मात्रा में प्राण भाव का संचार करना चाहते हैं बल्कि मनुस्य के जीवन के उचित मार्ग पर सन्देश भी देते हैं।
उनकी भाषा शैली –
हरिवंश राय बच्चन जी का भाषा शैली उनकी आम बोलचाल की भाषा खरी बोलो है इन्होने तत्सम तद्भव शब्दावली के साथ अपनी भाषा में भवानरूप देशी बिदेशी सब्दो का प्रयोग किया है इनकी भाषा में श्रृंगार रश की प्रमुखता के साथ सभी नवरशो का प्रयोग किया है श्रृंगार में भी संयोग की जगह सभी बियोग श्रृंगार का चित्रण अधिक किया है इन्होने अनुप्रास रूपक यमक उत्प्रेक्षा मानवीकरण आदि प्रिय अलंकारों का प्रयोग किया है।
पुरस्कार –
हरिवंश राय बचन साहब को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था।
उन्हें सोबियत लैंड नेहरू पुरस्कार और एफ्रो एशियाई सम्मलेन के कमल पुरस्कार से भी नवाजा गया।
बिरला फाउंडेशन ने उनकी आत्मकथा ,क्या भूलू क्या याद करू मैं ,के लिए सरस्वती सम्मान और।
भारत सरकार ने उन्हें साहित्य जगत में लिए पदम् भूषण से भी सम्मानित किये।
मृत्यु –
सांस लेने दिक्कत होने की वजह से 18 जनवरी 2003 को वे दुनिया को अलबिदा कह गए।
हरिवंश राय बच्चन के बारे में महत्पूर्ण तथ्य –
.W.B .YEATS .पर एपीईआई थिसिस पूरी करने के दौरान ही उन्होंने पहले बार श्रीवास्तव की जगह बच्चन सरनेम का प्रयोग किये।
केम्ब्रिज से ENGLISH LITERATURE में डॉक्टरेट करने वाले वे दूसरे भारतीय थे।
इलाहाबाद विश्व विद्यालय में उन्हें कुल 42 सभ्यो की लिस्ट में भूतकाल गर्वित छात्र दिया गया था
सिलसिला मूवी का प्रसिद्ध गाना रंग बरसे हरिवंश राय बच्चन के द्वारा ही लिखा गया था
उनके कुछ बेहतरीन कबिताये –
Best poetry by Harivansh Rai Bachchan
तू खुद की खोज में निकल……
तू खुद की खोज में निकल तू किस लिए हताश है
तू चल , तेरे वजूद की समय को भी तलाश है।
जो तुझसे लिपटी बेरियां समझ ना इनको वस्त्र तू
ये बेरियां पिघल के , बना ले इनको सस्त्र तू।
तू खुद की खोज में निकल तू किस लिए हताश है
तू चल , तेरे वजूद की समय को भी तलाश है।
चरित्र जब पवित्र है तो क्यों है ये दशा तेरी
ये पापियों को हक़ नहीं ,की ले परीक्षा तेरी।
तू खुद की खोज में निकल तू किस लिए हताश है
तू चल , तेरे वजूद की समय को भी तलाश है।
जला कर भष्म कर उसे जो क्रूरता का जाल है
तू आरती की लौह नहीं तू क्रोध की मशाल है।
तू खुद की खोज में निकल ,तू किस लिए हताश है
तू चल , तेरे वजूद की समय को भी तलाश है।
चुनार उड़ा के ध्वज बना गगन भी कपकपायेगा ,
अगर तेरी चुनार गिरी तो एक भूकंप आएगा।
तू खुद की खोज में निकल,तू किस लिए हताश है
तू चल , तेरे वजूद की समय को भी तलाश है।
तुम मुझको कब तक रोकोगे …..
मुठी में कुछ सपने लेकर
भरकर जेबों में आसाये।
दिल में है अरमान यही
कुछ कर जाएँ कुछ कर जाएँ।
सूरज सा तेज नहीं मुझमे
दीपक सा जलता देखोगे।
अपनी हद रौशन करने से
तू मुझको कब तक रोकोगे।
मैं उस मति का बृक्ष नहीं
जिसको नदियों ने सींचा है।
बंजर माटी में पलकर मैंने
मृत्यु से जीवन खींचा है।
मैं पत्थर पे लिखी इबारत हु
शीशे से कब तक तोड़ोगे।
मिटने वाला मैं नाम नहीं
तुम मुझको कब तक रोकोगे।
इस जग में जितने जुल्म नहीं
उतने सहने की ताकत है।
तानो के भी शौर में रहकर
सच कहने की आदत है।
मैं सागर से भी गहरा हु
तुम कितने कंकर फेंकोगे।
चुन चुन के आगे बढूंगा मैं
तुम मुझको कब तक रोकोगे।
झुक झुक कर सीधा खड़ा हुआ
अब फिर झुकने का सौक नहीं।
अपने ही हाथो रचा स्वं
तुमसे मिटने का खौफ नहीं।
तुम हालातों की भट्ठी में
जब जब मुझको झोकोगे।
तब तप कर सोना बनुगा मैं
तुम मुझको कब तक रोकोगे।
Harivansh Rai Bachchan Poem in Hindi
जो बीत गयी सो बात गयी…..
जो बीत गयी सो बात गयी
जीवन में एक सितारा था
माना वो बेहद प्यारा था
जो डूब गया सो डूब गया।
अम्बर के आनन् को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फिर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अम्बर सोक मनाता है
जो बीत गयी सो बात गयी।
जीवन में वह था एक कुसुम
थे उसपर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सुखी कितनी इसकी कलियाँ
मुर्झाई कितनी बल्लरियां
जो मुर्झाई फिर कहा खिली।
पर बोलो सूखे फॉलो पर
कब मधुबन सोर मचाता है
जो बीत गयी सो बात गयी
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया सो टूट गया।
मदिरालय का आँगन देखो
कितने प्याले हिल जाते
गिर मिटटी से मिल जाते है
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालो पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गयी सो बात गयी।
मृदु मिटटी के बने हुए हो
मदुघट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आये हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फिर भी मदिरालय के अंदर
मधु के घट है मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं।
वह कच्चा पिने वाला है
जिसकी ममता घट प्याले पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गयी सो बात गयी।
मैं कल रात नहीं रोया था……..
दुःख सब जीवन में विस्मृत कर
तेरे वक्ष स्थल पर सर धर
तेरी गोदी में चिड़ियाँ के बच्चे सा छिपकर सोया था
मैं कल रात नहीं रोया था।
प्यार – भरे उपवन में घुमा
फल खाये फूलो को चूमा
कल दुर्दिन का भर न अपने पंखो पर मैंने ढोया था।
मैं कल रात नहीं रोया था।
आँशु के दाने बरसाकर
किन आँखों के तेरे उर पर
ऐसे सपनो के मधुवन का मधुमय बीज बता बोया था।
मैं कल रात हो रोया था।
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