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Rahim Ke Dohe with meaning

Rahim Ke Dohe with meaning रहीम जी के बेहतरीन दोहे।

Rahim Ke Dohe with meaning -इस पोस्ट में महान कवि रहीम साहब के बेहतरीन दोहे प्रस्तुत है -रहीम जी के बेहतरीन दोहे-रहीमदास के 7 लोकप्रिय दोहे जो आज भी जिंदगी-rahim ke dohe in hindi

रहीम दास जी का जन्म कब हुआ?

rahim का जन्म 1553 ईस्वी में इतिहास प्रसिद्ध बैरम खान के घर लाहौर में हुआ था। जिनका पालन पोषण अखवार के यहाँ अपने धर्म पुत्र के तरह हुआ अकवर ने रहीम को शाही ख़ानदान के अनुरूप मिर्जाखां की उपाधि से सम्मानित किया रहीम की शिक्षा दीक्षा अकवर के उदार धर्म निरपेक्ष निति के तहद हुआ यही शिक्षा दिक्षा के कारन आज भी रहीम का काव्य कंठहार बना हुआ है। रहीम मध्यकालीन सामंतवादी के कवि थे। जो की संस्कृति प्रेमी थे महान कवि रहीम का व्यक्तिव कई प्रतिभा से परिपूर्ण थे ,वे सेनापति प्रशासक आश्रयदाता ,कला प्रेमी बहुभाषाविद ,कूटनीतिज्ञ एवं विद्वान कवि थे। कविवर रहीम सभी संप्रदाय को एक सामान मानते थे। रहीम कलम और तलवार दोनों के धनि थे ,

rahim के बारे में कहा जाता था की वह धर्म से मुसलमान और संस्कृति से शुद्ध भारतीय थे। रहीम का विवाह अकवर के द्वारा बैरम खान के बिरोधी मिर्जा अज़ीज़ कोका की बहन माहबानो से करवा दिया। जब रहीम का विवाह हुआ तो उनकी उम्र महज 16 वर्ष ही था।

कवि रहीम ने अबधि और ब्रज भाषा दोनों में ही कविता की जो सरल स्वाभाविक और प्रवाह पूर्ण है उनके काव्य में श्रृंगार शांत तथा हास्य राश मिलते हैं। तथा दोहा सरठा बरबई कवित और सवैया उनके प्रिय छंद है रहीम के कई रचनाये प्रसिद्ध है जिनको उसने दोहो में लिखा इन दोहो में निति परख का विशेष अस्थान है

Rahim के ग्रंथो में रहीम दोहाबलि और सतसई बरबई नायिका भेद श्रृंगार सोरठा मदनसाद पंचधायायी नगर सोभा फुटकर बरबई फुटकर छंद पद फुटकर कविवत सवैये संस्कृति काव्य सभी प्रसिद्ध है। रहीम जी का व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था वह मुसलमान होकर भी कृष्ण भक्त थे।

(Rahim Ke Dohe) 50+ रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित

रहिमन निज मन की विथा ,मन ही राखो गोय
सुनी अठिलैहैं लोग सब बांटी न लैहे कोय।

रहिमन धागा प्रेम का ,मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले ,मिले गांठ पर जाय।

रहिमन धागा प्रेम का ,मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर न जुड़े ,जुड़े गांठ परी जाय।

अमृत ऐसे वचन में रहिमन रिसकी गांस।
जैसे मिसिरिहु में मिल ,नीरस बांस की फ़ांस ।

अगर जाही किरन सों ,अथवत ताहि कांति।
त्यों रहीम सुख दुख सबै ,बढ़त एक ही भांति।।

एक उदर दो चोंच ,पंछी एक कुरंड।
कहि रहीम कैसे जिए ,जुदे जुदे दो पिंड।।

आदर घटे नरेस ढिंग ,बसे रहे कछु नाही।
जो रहीम कोटिन मिले धिक जीवन जग माहि ,

उगत जाही किरन सों ,अथवत ताही कांति।
त्यों रहीम सुख दुःख सबै ,बढ़त एक ही भाँती।।

ओछो काम बड़ो करै ,तौ न बड़ाई होय
ज्यो रहीम हनुमंत को ,गिरधर कहै न कोय

कदलि सीप भुजंग मुख ,स्वाति एक गुण तीन
जैसी संगती बैठिये तैसोई फल दीन

rahim ke dohe in hindi

करत निपुनई गुन बिना ,रहिमन निपुण हजूर
मनहु टेरत बिरत बिटप चढ़ी मोहि समान को कूर।

कहि रहीम इक दीपते ,प्रगट सबै दुति होय।
तन सनेह कैसे दुरै ,दृग दीपक जरू दोय।

कहि रहीम या जगत ते ,प्रीति गई दै टेर।
रहि रहीम नर नीच में ,स्वारथ स्वारथ हेर।

कहि रहीम संपति सगे बनत बहुत बहु रीत।
विपत्ति कसौटी जे कसे ,तेई सांचे मीत।

कहु रहीम केतिक रही ,केतिक गई बिहाय।
माया ममता मोह परि ,अंत चले पछिताय।

कहु रहीम कैसे निभै बेर केर को संग।
वे डोलत रस आपने उनके फाटत अंग।

कहु रहीम कैसे बनै ,अनहोनी है जाय।
मिला रहे वो न मिले ,तासो कहाँ वसाय।

कागत को सो पुतरा ,सहजहि में धूलि जाय।
रहिमन यह अचरज लखै सोऊं खैंचत बाय ।

काज परे कुछु और है काज सरे कुछु और
रहिमन भवरी के भए नदी सिरावत मौर।

काह कामरी पामरी ,जार गए से काज।
रहिमन भूख बूताइये ,कैस्यो मिले आनाज।

रहीमदास के 7 लोकप्रिय दोहे जो आज भी जिंदगी

कुटिलन संग रहीम कहि साध बचते नाही।
ज्यो नैना सैना करें ,उरज उमठे जांहि।

कैसे निबहै निबल जन ,करि सबलन सों गैर।
रहिमन बसि सागर बिषे ,करत मगर सों बैर।

को रहीम पर द्वार पे ,ज़ात न जिय सकुचात
सम्पति के सब जात है ,बिपति सबै लै जात।

कौन बड़ाई जलधि मिली गंग नाम भो धीम
काफी महिमा नहीं घटी ,पर घर गए रहीम।

खरच बढयो उधम घटयो ,नृपति निठुर मन ठीक ,
कहु रहीम कैसे जिए ,थोड़े जल की मीन।

खीरा को मुँह काटी के ,मलियत लोन लगाय
रहिमन करुए मुखन को ,चहियत इहै सजाय।

खैंचि चढ़नी ढीली ढरनि ,कहउ कौन यह प्रीती
आजकल मोहन गहि ,बंसदिया की रीती।

खैर खून खांसी ख़ुशी बैर प्रीति मदपान
रहिमन दाबै न दबै जानत सकल जहां।

गगन चढ़ै फरक्यो फिरै ,रहिमन बाहरी बाज़
फेरी आयी बंधन परै।,उधम पेट के काज।

गरज आपनी आप सों रहिमन कहि न जाय।
जैसे कुल की कुल बधु ,पर घर जाट लजाय।

गहि सरनागति राम की ,भवसागर की नाव
रहिमन जगत उबार कर और न कछु उपाय।

गुरुता फबै रहीम कहि फबि आयी है जाहि
उर पर कुच निकै लगै अनत बतौरी आहि।

चरण हुए मस्तक छुए ,तउ न छांड़ति पानि।
हियो छुअत प्रभु छोड़ि दे ,कहु रहीम का ज्ञानी।

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