Chandrasekhar Azad Poem in Hindi
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तुम भूल गए…. अंगेजी जलादो को
सबक सिखाना याद है क्या
चंद्र शेखर आज़ाद का ठिकाना याद है क्या
तुम भूल गए उसके बलिदान को
भारत के आन बाण और शान को
तुम भूल गए उसकी हस्ती को
आज़ादी लेने की उसकी मस्ती को
उन गोर अंग्रेजो को भागाना याद है क्या ?
उन्हें दौरा दौरा कर भी ज़िंदा
हाथ न पकड़ आना याद है क्या
तुम भूल गए उस भावरा के मिटटी को
तुम भूल गए उसने गोली मारी
अपनी कनपट्टी को
सचमुच लगता है तुमको अब
याद नहीं कुछ ख़ास नहीं ,
वो रगो में दौरा था जो खून
वो तुम्हारे पास नहीं
तुम भूल गए उस चन्दशेखर आज़ाद को
जिसकी वजह से तुम आज आज़ाद हो
तुम भूल गए उस आज़ाद को ,
मलते रह गए हाथ शिकारी
उड़ गया पंछी तोड़ पिटारी
अंतिम गोली खुद को मारी
जियो तिवारी जनेऊधारी
भारत माँ का राज दुलारा
एक के बदले दस को मारा
बहरे हो गए गोरे जब वो
हर हर महादेव हुंकारा
छोड़ अहिंसा की रट वाज़ी
सबको ठोका बारी बारी
जियो तिवारी जनेऊधारी ,
काया से जैसे बजरंगी
शिव के जैसा क्रोध भुजंगी
तीसरी आँख खुले तो कांपे
थर थर थर थर दुष्ट फिरंगी
अंग्रेजो के शव पे नाचा
निल कंठ का वो अवतारी
जियो तिवारी जनेऊ धारी
देश के दुश्मन कान लगाए
सुनो जो पंडित पुत्र सुनाये
गार दिए जाओगे ज़िंदा
अगर जनेऊ से टकराये
दुर्वासा के श्राप से डरना
जनहित में चेतावनी जारी।
जियो तिवारी जनेऊ धारी ,
शहीद चंद्रशेखर आजाद पर छोटी कविता
क्या विस्मयकारी दृश्य देखा होगा उन अल्फ्रेड के पत्तो ने ,
सहसा आज़ाद क घेर लिया ,फिरंगी कम्वख्तो ने ,
पेड़ो की झुरमुट से कदमो ,की आहट आयी
समझ गए शेखर के गद्दारो ने अपनी ज़ात दिखाई ,
मिटा दूंगा फिरंगियों को आज़ाद ने कसम खायी
अपनी प्राणो से भी प्यारी पिस्तौल उठाई ,
दोस्त सम्भलो दुश्मन ने किया आघात है
माना की देश हिट मरने के तुम्हारे भी ज़ज़्बात है ,
मगर जाओ तुम अभियान ज़ारी रखना ,डरने की क्या बात है ,
छिन्न मस्ता कल भैरवी जय भवानी मेरे साथ है।
तुम क्या सोचते हो की लड़ते लड़ते दम तोड़ दूंगा मैं
या ये सोचते हो की इन फिरंगियों को ज़िंदा छोड़ दूंगा मैं ,
अरे कायर कारतूसों की क्या विसात
काल चकता को मोड़ दूंगा मैं
मृत्यु सबकी स्वामिनी आज उसका
यह भरम भी तोड़ दूंगा मैं ,
जगदम्बा का केहरि वो
अल्फ्रेड पार्क में दहाड़ रहा था
इंद्रा का ऐरावत इन्कलापी भाषा में चिघार रहा था ,
निल गगन में दिनकर भी अस्तांचल की और बढ़ रहा था ,
भारत माँ का अकेला सिंह सैकड़ो भेड़ियो से लड़ रहा था ,
हौशला था जूनून था ज़ज़्वा था
हार भी कैसे मान लेता हिंदुतानि खून था ,
आज़ाद को कैद करने की मन में थी अभिलाषा
कदम कदम पर हाथ लग रही थी उनको निराशा
धरी की धरी रह गयी गोरो की अभिलाषा ,
आज़ाद की पिस्तौल बोल रही थी भद्रकाली की भाषा ,
सुमिंत्रानन्दन ने इंद्रजीत को संहारा
राजीव नैन की सौगंध खाकर
मर्यादा पुरुसोत्तम ने दसानन को ललकारा ,
शक्ति का वर पाकर जयद्रथ का काल बने अर्जुन भी ,
कर में धनुष उठाकर आज़ाद ने
तीनो गोरे मार गिराए जय भवानी बोलकर
एक बार पुनः मृत्यु ने भाग्य को धोखा दिया
पिस्तौल की आखड़ी गोली ने
आज़ाद को चौका दिया
shahid chandrashekhar azad poetry in hindi
आज़ाद ने वो मिटटी उठायी
हे भारत माँ छामा करना तू मुझको
आज़ाद होकर भी आज़ाद नहीं करा पाया माँ तुझको
माँ गर्व में ही तियाग दिया था
उसने मृत्यु के भय को
देशो दिशाए अचंभित आज़ाद के निश्चय को
धरा उठा आज़ाद पुरुष भी जब
आने वाले कल को भांपा ,
त्रिवेणी का संगम सहम गया
डोली धरा और अम्बर भी काँपा
तब युग युगांतर तक रहे आलोकित
देखभक्ति की मशाल जला दी
आज़ाद ने अंतिम बोली बन्दे मातरम बोलकर
अपनी कनपटी पर चला दी ,
लड़कपन में लिया गया संकल्प उसे
अंतिम छनो तक याद रहा
मरते दम तक आज़ाद रहा ,
भारत का स्वाभिमान बलि हो गया बहुत बैभव से ,
और घंटो तक दूर रहे फिरंगी आज़ाद के शव से।
शहीद भगत सिंह पर कविता हिंदी में