arif saifi shayari status -इस पोस्ट में बेहद ही लोक्प्रिय शायर आरिफ सैफी के बेहतरीन दमदार शायरी शेयर किया -arif saifi ki shayari-arif saifi shayari in hindi lyrics-arif saifi shayari in hindi 2 line-top arif saifi shayari -आरिफ सैफी की दमदार शायरी -Most Popular Shayari Arif Saifi 2023- Poem by Arif Saifi-Best shayri Arif saifi-आरिफ सैफी की शायरी, कविता, मुशायरा।
arif saifi status shayari
जो लिखा है मेरे मुकद्दर में,
उसको हरगिज बदल नहीं सकते ,
मुझको ऐ आस्तीन के सांपो तुम,
डस तो सकते हो निगल नहीं सकते।
हमे समझा है क्या तुमने अरे कंजर्व तालाबों,
अगर आवाज़ देदे हम तो समंदर सर के बल आये,
हमारी प्यास को अल्लाह ने बक्सी है वो अज़मत,
जहाँ मार दे ठोकर वही पानी निकल आये।
खुद के दिल से उत्तर गए होते,
रेज़ा रेज़ा बिखड़ गए होते,
आप हँसते हैं तोड़कर वादा,
डूबकर हम तो मर गए होते।
ढूंढने जाना नहीं पढता कही भी दिल को,
सिद्दते दर्द खुद ही अपना पता देती है,
और कोन सा ज़ख्म मुझे किसने दिया है आरिफ,
ये मुझे ज़ख्म की गहराई बता देती है।
बातें लच्छेदार बनाने आते हो,
धोखा कितने प्यार से देके जाते हो,
और शाहद से भी मीठा लगता है जो मुझको,
यार तुम ऐसा जहर कहाँ से लाते हो।
गैर तो गैर है गैरो को भला क्या मतलब,
सच अगर पूछिए अपने ही दगा देते हैं,
हाथ खुद तेज़ हवाओ से मिलकर आरिफ,
पेड़ सूखे हुए पत्तों को गिड़ा देते हैं।
कहानी ख़त्म हो जायेगी इनकी बेज़ुबानी की ,
खुदा देगा जुबान और नाम सब का ले रही होगी
ओर बरोज़ ए हसर हमको डसने वालों के खिलाफ आये आरिफ ,
हमारी आस्तीन खुद गवाही दे रही होगी।
बर्षों के तैराक थे लेकिन कुछ लम्हो में डूब गए ,
दरिआओ के मालिक थे जो वो कतरों में डूब गए ,
अपनी मंजिल तक जा पहुंची आरिफ सीधे साधे लोग,
झूठी सांन दिखाने वाले सब कर्जों में डूब गए
मेरे नशीब में यूं तो है बादशाही पर,
क़लमदारी से किसी पल मैं चुकता नहीं ,
और जुड़ी होती इससे ज़रूरते मेरी,
कसम खुदा की मैं दौलतो।
Most Popular Shayari Arif Saifi 2023
दोस्त हो तो टोस्ती का हक अदा करते रहो,
मैं वफ़ा करता रहूँगा तुम दगा करते रहो,
और मेरे जीते जी तू मुझसे जीत पाओगे न तुम,
यूँ करो फिर मेरे मरने की दुआ करते रहो।
अब नहीं प्यार का कोई मोती,
दोस्ती के किसी खजाने में,
सब ज़रूरत का खेल है वार्ना,
कोन किसका है ज़माने में।
अपने ऊपर जुल्म ये ढाना पड़ता है ,
दानिस्ता भी धोखा खाना पड़ता है ,
और कुछ सांपो से इतने गहरे रिश्ते हैं
उनसे खुद को खुद दसवाना पड़ता है।
चाँद समझा था जिसे टूटता तारा निकला,
एक मसीहा था कातिल जो हमारा निकला,
और तुम जिसे पहन के आये हो दिखाने मुझको,
क्या करोगे वो अगर मेरा तारा निकला।
कभी गुस्ताखियों को हम नजर अंदाज़ करते हैं,
कभी एक लफ्ज छोटा सा जिगर के पार जाता है ,
ज़माने को झुकाने का हुनर रखता है जो आरिफ,
वही इंसान अपने घर में अक्सर हार जाता है।
मान बैठे हो अभी से ही भला क्यों हार तुम ,,
फिर से डसने के लिए मुझको रहो तैयार तुम,
और इतने से तो कुछ नहीं बिगाड़े गा ये सांपो मेरा,
मस्वारा ये है की बढ़ा लो जहर की मिगदार तुम।
यही पैदा हुए थे और यही पे मरने वाले हैं,
ज़रा सा डस डसा कर पेट अपने भरने वाले हैं,
और खुदा का वास्ता तुम्हे इन्हे तुम सांप मत कहना,
ये मेरे आस्तीनों से मोहब्बत करने वाले हैं।
और दिल के दुश्मन को कभी दिल से लगाया ही नहीं ,
खोटे सिक्के का कभी भाव बढ़ाया ही नहीं,
और पाउ के जूते को पओ तलक ही रखा,
हमने दौलत को कभी सर पर बिठाया ही नहीं।
arif saifi shayari in hindi lyrics
जो गवारा नहीं उसको भी गवारा करना,
यानी खुद ही पानी खुसियो से किनारा करना,
और मेरी नज़रो में तो है मौत से बत्तर आरिफ,
दिल से उतरे हुए लोगो में गुजारा करना
पहले कुछ हमवारा होनी चाहिए दिल की ज़मींन,
तरबियत के बीज को फिर उसमे बोना चाहिए,
जिसमे शामिल दोस्ती हो फ़र्ज़ हो अख़लाक़ हो,
बाप और बेटे का रिस्ता ऐसा होना चाहिए।
गैर तो गैर है गैरो से भला क्या मतलब,
सच अगर पूछिए तो अपने ही दगा देते हैं,
और हाथ कुछ तेज़ हवा से मिलकर आरिफ,
पेड़ सूखे हुए पत्ते को गिरा देते हैं।
बहुत मुश्किल से पंहुचा हु किनारे तक मैं आरिफ,
फिर तूफ़ान की जानिब सफीना मोड़ लू कैसे,
वो जिनकी किर्चियाँ चुभती है अब तक जहन में मेरे,
मैं उन खुदगर्ज रिश्ते दोबार जोड़ लू कैसे।
है बेटी का बाप बहुत पैसे वाला,
बेटे वाला तो उससे भी तगड़ा है,
शादी में कर डाला करोड़ो का खर्चा,
बस काजी के कुछ पैसो पर झगड़ा है।
सीधा सीधा तक रहते और पछाड़ देते हम,
उनके नाम का पन्ना ऐसे फॉर देते हम,
और बेसुमार है आरिफ सांप आस्तीनों में ,
एक दो अगर होते कब का झार देते हम
भला कब एक जैसी हर बात किसी को सोची है ,
हर एक इंसान की अपनी एक अलग औकात होती है ,
किसी के बोलते ही फूल झड़ने लगते हैं आरिफ,
किसी के बोलते ही जहर की बरसात होती है।
मिलते हैं ज़िंदगी की तरह खुशदिली के साथ,
और मौत के सिकंजे में कस्ते भी हैं मुझे,
कितने अजीब हैं ये मेरे आस्तीन के सांप,
इज्जत भी मेरे करते हैं डसते भी हैं मुझे।
आरिफ सैफी की शायरी, कविता, मुशायरा।
जिसे भी देखो लगा है मुझे डसने की तैयारी में,
मुद्दत से रहता हु सांपो की एक पिटारी में,
इसके उसके तानो से जी जलता है कभी,
दिल करता है आग लगा दू साड़ी रिस्तेदारी में।
हरेक आदमी को ये हैरत में डालकर,
मुर्दा ये बोला चेहरा कफ़न से निकालकर,
लिख देना मेरे कब्र के पत्थर पे जहर से,
मैं मुतमईन था आस्तीन में सांप पालकर।
जो बच गया था वो सागर दिया गया है मुझे,
क्यों इतने हलके में आखिर लिया गया है मुझे,
और सजी रही तैरे बज़्मसा की आगे जहां,
बड़े सलीके से रुस्वा किया गया है मुझे।
करिश्मा ऐसा देखा है हमने अपनी आँखों से,
कुछ भी देखकर अब हम ज़रा हैरत नहीं करते,
और उन्हें भी मालो ज़र ने कर दिया है मोहतरान आरिफ,
जो अपनी बाप दादाओ की भी इज्जत नहीं करते।
याद करना वेवफाओ का बहाना है फ़क़त,
असल में तो अपने जख्मी दिल हरा करना है बस,
जो मुझे मोहब्बत से डसता था आरिफ रात दिन,
दोस्त था या सांप था ये पता करना है बस।
गैर की गलती से अनजान नहीं मिलते हैं,
अपनी ऐबो पे पशेमान नहीं मिलते हैं,
लोग मिलते हैं खुदा और फरिस्तों जैसे,
आजकल दुनिया में इंसान नहीं मिलते हैं।
तू मांगने के तरीके से मांग तो बन्दे,
वो एक पल में ही बिगड़ी संभाल सकता है,
और नहीं कोई है ठिकाना खुदा का रहमत का,
वो आधी रात में भी सूरज निकाल सकता है।
तमन्ना रक़्स करती है जहाँ धरकन की सरगम पर,
उसी के वो काबिल है उसी महफ़िल में रखते हैं ,
और निगाहो में बसा लेना तो छोटी बात है आरिफ,
मोहब्बत करनेवालों को हम अपने दिल में रखते हैं।
आरिफ सैफी shayari in hindi 2 line
जिसे कानून कहते हैं वो नंगा हो गया होता,
खफा हमसे हमारा ही तिरंगा हो गया होता,
मिटा डाला है पंचायत ने आरिफ धरम का झगड़ा ,
अगर थाने चले गए होते तो दंगा हो गया होता।
दिल बहुत बचेंन सा था उसको पैदल देखकर,
इसलिए बाइक की आरिफ हमको हाजत हो गयी,
हमने जब बाइक खरीदी अपना सबकुछ बेचकर,
उसको तब तक कार वाले से मोहब्बत हो गयी।
ताक पे रखते हैं आरिफ जान भी पहचान भी,
भूल जाते हैं हमारे वो सब अहसान भी,
और जिसका दिल चाहा उसी ने सांप बनकर डस लिया,
इक्षाधारी हो गया आजकल इंसान भी
मोहब्बत से भरा जन्नत का एक पैगाम कहते हैं,
यंहा अब कौशार का छलकता जाम कहते हैं,
और सुनो वो मौत जो हमको सहादत से मिला डाला,
हम ऐसी मौत को अल्लाह का इनाम कहते हैं।
मायुश रह न पायेगा दुनिया में आदमी,
अपने खुदाये पाक को दिल से पुकार के,
जैसे है दिल के साथ में धड़कन जुडी हुयी,
नज़दीक इतना रब है रोज़दार के।
उसे फुर्सत नहीं मिलती कहि भी और जाने की,
वो अपने घर में कुछ ऐसे थकन से चूर आता है,
और कनीजो को भी बस सहजादो की,
किसी लड़की के खाबो में कहाँ मज़दूर आता है।
दोस्ती के लहज़े में पहले पुकारा जाऊंगा,
दुश्मनी की भठियो में फिर उतारा जाऊंगा,
मैं अली बाबा और रिस्तेदार हैं चालीस चोर,
एक भी गलती हुयी मुझसे तो मारा जाऊंगा।
कभी भी नाम में अपने कोई सोहरत नहीं जोड़ी,
कभी इमदाद में अहसान की कीमत नहीं जोड़ी,
यही तो सोचकर आरिफ सुकून से नींद आता है,
गरीबो का हक़ मारकर कभी दौलत हो जोड़ी।
Poem by Arif Saifi
को कौम वक्त से कन्धा सदा मिला के चले,
उसी के चलने से दुनिया की नब्ज़ चलती है,
और तरकियो के लिए मेहनती है लाज़िम,
फ़क़त दुआओ से किस्मत नहीं बदलती है।
बातें लच्छेदार बनाने आते हो,
धोखा कितने प्यार से देकर जाते हो,
और शहद से मीठा लगता है जो मुझको,
यार तुम ऐसा ज़हर कहाँ से लाते हो।
वक्त के ताज में हीरे से जड़ा होता है,
क़द्रो कीमत में वही सबसे बड़ा होता है,
छोड़ जाती है इंसान से जब उसकी हिम्मत,
दोस्त उस वक्त में भी साथ खड़ा होता है।
मतलब के हैं यार दिलो के काले हैं,
मौका मिलते ही सब डसने वाले हैं,
और किस्मे कितना ज़हर है है हमको मालुम,
सबसे ज़्यादा सांप हमी ने पाले हैं।
अपनों ने ऐसे सकी सियासत की रोटियां,
आरिफ मेरे ज़िगढ़ को एक तंदूर कर दिया,
गुमनाम कोई एक सपेरा था मैं कभी,
डस डस के सांपो ने मुझको मशहूर कर दिया।
दिन मेरे ख़राब है ज़डा सा इन दिनों,
वादे न किसी और के न दिलासे हैं इन दिनों,
और जिनकी रगो में दौर रहा है नमक मेरा,
वो मेरे खून के प्यासे हैं इन दिनों।
भूल जब हमसे हो ही गयी तो फिर,
जो भी बनता था वो फ़ाईन दे दिया,
और टैक्स था इनकम से ज़्यादा इसलिए,
इसक को हमने रिजाइन दे दिया।
रास्ते की धुल माथे पर सजाना छोड़ दो,
बेसबब कीचड़ को अब चन्दन बनाना छोड़ दो,
जिसकी बातों से महक आती न हो इखलास की,
आप उन लोगो को आरिफ मुँह लगाना छोड़ दो।
अपना अंदाज़ तो सहबाज़ नहीं दे सकता,
जान दे सकता है परवाज़ नहीं दे सकता,
मुझे रखना है सदा तेरी सिखावत का भरम,
दूसरे दर पर मैंने आवाज़ नहीं दे सकता।
Best shayri Arif saifi
आँखों ने जब दिल का लहू छलकाया है ,
तब जाकर कुछ चैन ज़िगड को आया है,
और उससे पूछो आप भरोशे की कीमत,
जिसने अपने भाई से धोखा खाया है।
दिया धोखा या धोखा हो गया है ,
कही कुछ तो अनोखा हो गया है,
चलो खुलकर करो अब वेवफाई,
हमे तुमपर भरोषा हो गया है।
हसद रखती है जो औरो की खुशियां देखकर , आरिफ,
वो अपनी ज़िंदगी की लुफ्त हरगिज़ चख नहीं सकते,
और मिला देते हैं वो अपनी इज्जत को वो खुद भी ख़ाक में अपनी ,
जुबान को जो काबू में अपनी रख नहीं सकते।
अनजान सी तड़प कोई शामिल सदा में है,
थोड़ा असर तो आज हमारी दुआ में है,
दौलत से मिल न पायेगा ये दुनिया में कभी,
दिल का सुकुनो चैन तो ज़िक्र ए खुदा में है।
झूठी मोहब्बतों के सिकंजे में एकदिन,
गर तुझे हो सकता तो मुझको कस के देख लो ,
और मर जायेगा तू मेरे मोहब्बत के ज़हर से,
ऐ आस्तीन के सांप मुझे डस के देख लो।
मैं झूठ की मिला नहीं पता हु चासनी,
तल्खी इसी लिए तो है मेरे जुबान में,
बांकी तमांम लोग तो हैं दूध के धुले हुए,
एक मैं ही तो बुरा हु फ़क़त खानदान में।
अय्याशीयो की रुत वो गुलाबी चली गयी,
बर्वाद करके उनकोब खराबी चली गयी ,
और कोठे के जीने चढ़ने उतरने के सौक में,
जो थे नवाब उनकी नवाबी चली गयी।
प्यास से कोई मतलब रखता नहीं हु मगर,
फ़ायदा कुछ तो हो मेरी खून की किस्तों में अब,
जिनमे लालच के सिवा कोई ज़ज़्वा न था,
मैं लानत भेज दी है उन सब रिस्तो में अब।
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