जमशेद जी टाटा की कहानी – Jamsetji Tata Life story
ये कहानी उन उधोगपति की है जिन्हे भारतीय उधोगो के जनक भी कहा जाता था जिन्होंने अपने देश के लोगो के लिए कई बड़े बड़े कम्पनी खोला अपने देश को बड़े उधोगिक देश के रूप में उभारा ये कोई और नहीं भारतीय उधोगपति जमशेद जी टाटा जिन्होंने ने टाटा ग्रुप की शुरुआत की जो आता आज दुनिया में धूम मचा रही है जमशेद जी टाटा सूती कारखानों से लेकर टाटा स्टील टाटा मोटर्स जैसे कई बड़े बड़े कंपनी की अस्थापना की ये कहानी तब की है जब भारत में अंग्रेजो की शासन थी आज हम उनके जीवन के कई कहानियो और संघर्ष को जानेगे –
जमशेद जी टाटा की शुरूआती जीवन –[ Early Life of Jamsetji Tata ]
जमशेद जी नौशेरवांजी टाटा का जन्म 1839 में गुजरात के नवसारी में एक पारसी परिवार में हुआ था उनके पिता जी का नाम नौशेरबानजी टाटा और माता का नाम जीवन बायीं टाटा था पारसी खानदान में नौशेरवांजी पहले व्यवसायी थे। जमशेद जी टाटा अपनी प्राथमिक शिक्षा नवसारी में ही किये और हाई स्कुल की पढ़ाई मुंबई से किये।
जमशेद जी टाटा 14 वर्ष उम्र में ही मुंबई आ गए और पढ़ाई के साथ साथ अपने पिता के कारोबार में हाथ बताने लगे। जमशेद जी जैम अलीफेंटन कॉलेज में प्रवेश किये और अपने पढ़ाई के दौरान ही हीराबाई दबू से विवाह कर लिया।
जमशेद जी 1818 में अपनी पढ़ाई पूरा करके अपने पिता के व्यवसाय में जुड़ गए 29 वर्ष के उम्र तक उन्होंने अपने पिता के कारोबार में उनकी मदद की लेकिन उन्हें बस यहीं तक नहीं रहना था जमशेद जी अपनी 21 हजार के वजट के साथ एक ट्रेडिंग कम्पनी की अस्थापना किये।
जमशेद जी टाटा के उद्योगिक जीवन और संघर्ष -[ Industrial life and struggle of Jamsetji Tata ]
ये दौर 1857 की थी जब अंग्रेजो की अत्यंत बर्बरता से 1857 में हुए क्रांति को कुचला गया था जिसमे अंग्रेज पूरी तरह सफल हुए थे। जमशेद जी 1868 में अपनी 21 हजार के पूंजी के साथ खुद का बिजनेस शुरू किया सबसे पहले उन्होंने एक दिवालिया कारखाना खोला और उस कारखाने को रुई के कारखाने में बदल दिया और उस कारखाने का नाम अलेक्सेंडर मिल दो साल के वाद जमशेद जी इस मिल को अच्छे खासे मुनाफे के साथ बेच दिया। इस पैसे से उन्होंने 1874 में नागपुर में एक रुई का कारखाना खोला।
महरानी बिकटोरिया उन्ही दिनों भारतीय महारानी का ख़िताब हांसिल किया था और जमशेद जी ने भी वक्त को समझते हुए उस कारखाने का नाम इम्प्रेस मिल रख दिया इसका मतलब महारानी मिल्स।
1869 तक टाटा परिवार को एक छोटा व्यापारी समझा जाता था इन्हे मुंबई के व्यापारियों के समूह में पीछे के बेंच पर बैठने वाला माना जाता था जमशेद जी इस भरम को तोड़ते हुए इम्प्रेस मिल्स बनाया जो उनकी पहली बड़ी उद्योगिक कंपनी थी। जब जमशेद जी नागपुर में सूती मिल बनाने की घोसना की उस समय मुंबई को टेक्सटाइल नगरी कहा जाता था उस समय अधिकांश सूती कारखाना मुंबई में ही हुआ करता था इसलिए जब जमशेद जी ने नागपुर को चुना तो उनकी बहुत आलोचना हुआ। एक मारवाड़ी फाइनेंसर ने कहा इस मिल में पैसा लगाना मिटटी में सोने दबाना जैसा है। दरअसल जमशेद जी ने नागपुर को चुनने का फैसला तीन कारणों से लिया था। कपास उत्पादन आस पास के इलाको में ही होता था और रेलवे जंक्शन भी पास ही था पानी और ईंधन की प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी
जमशेद जी की पहली स्वदेशी कम्पनी की शुरुआत – [Jamsetji Tata‘s first company ]
1874 में जमशेद जी टाटा ने THE CENTRAL INDIA SPINNING WEAVING AND MANUFACTURING की स्थापना की ये भारतीय द्वारा शुरू की गयी पहली कंपनी थी जिसके शेयरो का बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार होता था उस समय इस कंपनी की पूंजी पांच लाख रुपया था। जिसमे टाटा का निवेश 1 लाख पचास हजार था और इसीलिए टाटा को मैनेजिंग डॉयरेक्टर बना दिया गया।
डाइरेक्टर बनने के साथ ही उन्होंने फिर एक कपास मिल लगाने का फैसला लिया और इस उदेश्य के लिए उन्होंने नागपुर को ही चुना इस मिल की स्थापना से ढेर लोगो को रोजगार का अवसर मिला जिसके कारन जमशेद जी टाटा लोगो के नजर में एक चमकता सितारा बन गए अपने कारोबरी जीवन के शुआत में ही जमशेद जी को एक गंभीर आर्थिक झटका भी लगा कारोबारी साझेदारी प्रेमचंद्र राय का कर्ज उतारने के लिए उन्हें अपना माकन और जमीन जायदाद भी बेचना पड़ा इसके अलावा 1887 में खड़ी स्वदेसी मिल में उनकी पूरी जमा पूंजी लग गयी। और वे आर्थिक संकटो से घिर गए। फिर भी टाटा ने हिम्मत नहीं हारी और अंततः सभी संकटो से उबरकर एक बड़ा नाम बन गए।
Jamsetji Tata एक अलग ही व्यक्तित्व के मालिक थे उन्होंने न केवल कपड़ा बनाने के ही अलग अलग तरीके अपनाये बल्कि अपने कारखाने में काम करने वाला सर्मिको को भी खूब ध्यान रखा उनके भले के लिए जमशेद जी ने कई श्रमिक नीतिया अपनाया जमशेद जी को उनके कर्मचारी बहुत मानते थे क्यों की उन्होंने अपने कर्मचारी को हर एक सुबिधा का ख्याल रखते थे इसलिए उनकी मिले दुनिया भर की सबसे अच्छी संचालित मिलो के रूप में जाना जाता था। जमशेद जी के मिलो में कई ऐसी नीतिया थी जो कई दसक पहली थी।
इन मिलो में अपने कर्मियों के परसिक्षण का भी प्रवन्ध था उन्होंने काम के जानते कम किये कार्य स्थलो को हवादार बनाया और कई योजनाओ का भी शुरुआत किये। उन्होंने कर्मचारियों को दुर्घटना और बीमारियां लाभ भी देना शुरू कर दिया कर्मचारियों को छुट्टी की भुक्तं और रीटायॅड मेन्ट और पेंसन की भी शुरुआत की तब उस समय ये साडी सुबिधाये वेस्टर्न कन्ट्री में नहीं दी जाती थी। इस लिहाज से भी वे अपने समय से कई आगे थे।
Jamsetji Tata अपनी सफलता को कभी जागीर नहीं समझा बल्कि उनके लिए उनकी सफलता उन लोगो की थी जो उनके लिए काम किया करते थे। Jamsetji Tata को अनेक राष्ट्रवादी और क्रांति कारी नेताओ के साथ नजदीकी संबंध थे इनमे प्रमुख थे दादा भाई नौरोजी और फिरोज साह मेहता जमशेद जी और इनकी सोच पर उनका काफी प्रभाव था उनका मानना था आर्थिक स्वतंत्रता ही राजनैतिक स्वतंत्रता का आधार है।
जमशेद जी के तीन बड़े सपने थे लोहा और स्टील कंपनी खोलना विश्वा प्रसिद्ध अध्यन केंद्र की अस्थापना करना और तीसरा था जल विधुत परियोजना लेकिन दुर्भाग्य ऐसा हुआ की उनके जीवन में कोई भी सपना पूरा नहीं हुआ लेकिन वो शुरू तो कर ही चुके थे एक ऐसा शुरुआत जो आने वाले पीढ़ी में अनेक देशो में फ़ैल आयी। इसके आलावा उनका और सपना था जिसको वो पूरा करना चाहते थे और ये था होटल ताजमहल उनका ये सपना उनके जीते जी ही पूरा हो गया।
होटल ताजमहल की कहानी -[ Story of Hotel Taj Mahal ]
विश्व प्रसिद्ध होटल ताज 1903 में 4 करोड़ 21 लाख रूपये की शाही खर्च से तैयार हुआ उस समय की ये रकम आज के समय के अरबो रुपया के बरावर थी मुंबई के शान कहे जाने वाले होटल ताज के निर्माण के पीछे कहानी है कहा जाता है 19वीं सदी के अंत में भारत के कारोबारी जमशेद जी टाटा बॉम्बे के सबसे महंगे होटल में गए दुर्भाग्य से उन्हें रंग भेद का शिकार होना पड़ा उन्हें होटल से बाहर जाने तक को कहा गया था। उन्होंने तो पहले ही एक होटल बनाने का फैसला किया था और ये घटना उन्हें और ज्यादा उकसाने का काम किया। Jamsetji Tata ने तत्काल तय किया की वे भारतीयों के लिए इससे बेहतर होटल बनायेगे 1903 में मुंबई के समुद्री तट पर ताजमहल पैलेस होटल तैयार हो गया ये मुंबई की पहली ऐसी ईमारत थी जिसमे बिजली थी अमेरिकी पंखे लगाए गए थे। जर्मन लिप्टस मौजूद थी और अंग्रेज सेफ भी थे। उस समय ये होटल अन्य होटल की तुलना में काफी बेहतर था। आज भी भारत का एक धरोहर है। इसमें भी उन्होंने अपने राष्ट्रवादी सोच को दिखाया था उस समय भारतीय लोगो को बेहतरीन यूरोपीय होटलो में घुसने नहीं दिया जाता था इसीलिए उन्होंने ताजमहल होटल का निर्माण करवाया था ताकि भारतीय नागरिक भी एक विश्व अस्तरीय होटल में प्रवेश कर सके कुछ दिनों बाद जमशेद जी की तबियत ख़राब रहने लगी। जिसके कारन 1904 में जर्मनी में अंतिम साँस ली।
आयरन स्टील कंपनी से लेकर टाटा जमशेदपुर शहर बनने तक की कहानी –
भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में जमशेद जी का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है इन्होने भारतीय औद्योगिक मार्ग ऐसे समय में प्रसस्थ किया था जिस समय केवल यूरोपीय विशेष कर अंग्रेज ही कुसल समझे जाते थे औधोगिक विकासकारियो में जमशेद जी यही नहीं रुके देश के सफल औधोगिकरण के लिए उन्होंने इस्पात कारखानों की महत्वपूर्ण योजना बनाई ऐसे अस्थानो की खोज की गयी जहाँ लोहे की खदानों के साथ साथ कोयला और पानी की सुबिधा भी प्राप्त हो अंततः जमशेद जी ने बिहार के जंगलो में सिंधु भूमि में वो स्थान ढूंढ निकला जहाँ वो इस्पात मिल की अस्थापना कर सकते थे आगे चलकर इस जगह का नाम जमशेदपुर रखा गया जिसका दूसरा नाम टाटा नगर भी है ये शहर बर्तमान में भारत के झारखंड राज्य में स्थित है।
1907 में टाटा एंड आयरन स्टील कंपनी टिस्को की अस्थापना से इस इस सहर की बुनियाद पड़ी थी इससे पहले साक्षी नाम का एक आदिवासी गांव यहाँ पर हुआ करता था यहाँ की मिटटी काली होने के कारन यहां का पहला रेलवे स्टेसन काली माटी के नाम से बनाया गया जिसे बाद में बदल कर टाटा नगर कर दिया गया यंहा खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्धता और स्वर्णरेखा तथा खरकई नदी और कोलकाता को नजदीक होने के कारन इस आधुनिक शहर की निब राखी गयी। जमशेदपुर भारत की आज सबसे अधिक प्रगति शील औधोगिक नगरी में से एक है टाटा घराने की कई कंपनी टाटा मोटर्स ,टाटा टिस्को। टिस्कोंड।,टैम्प्लेट टिमकाण्ड और इत्यादि यंहा कार्यरत हैं जमशेद जी के कई अन्य योजनाओ में से एक प्रसिद्ध योजना पस्च्मि घाटों के तीब्र जल प्रपातो से विद्युत उत्पादन करने वाला बिसाल उद्योग है जिसकी निब 9 FEB 1911 को लानौली में गबर्नरों के द्वारा रखी गयी थी जो पुरे मुंबई में बिदूत की आपूर्ति करने लगी।
सफल उधोगपति होने के साथ साथ जमशेद जी टाटा उदार प्रविर्ती के व्यक्ति थे।
आनंद कुमार के शुरुआती जीवन | anand kumar super30 ki kahani
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-धन्यवाद –