zahid bashir poetry, in hindi-इस पोस्ट में मशहूर सायर ज़ाहिद बशीर के बेहतरीन पोएट्री सायरी गजल शेयर किया गया है -Zahid Bashir poetry Shayari Collection-ज़ाहिद बसीर के सायरी -zahid bashir poetry in urdu-best poetry of zahid bashir
Zahid Bashir poetry, Shayari Collection
अब जो आ नहीं रहा है डर से सामने
शेर बन रहा था अपने घर के सामने।
लग्जीसे नजर पर भी था जिसे ऐतराज़
जाम रख दिया है उसे भर के सामने।
पहला ज़ख्म तूने दे दिया है मुझे प्यार का ,
इंतज़ार कर रहा हु तेरे अगले वार का।
इश्क़ में सामनाये हो कैसे सक्स से जो
दिल से एक का न हो मगर बने हजार का।
इंतिहाई पास बल्कि साथ से जाने दिया
आखड़ी मौका भी हमने हाथ से जाने दिया
दिल पर प्यार की मोहर लगा के भेजा है
देर से आज हम ने उसे घर भेजा है।
हम भी गाओ में साम को बैठा करते थे
हमको भी हालत ने बाहर भेजा।
बरना एक हजूम था दिल दरवाजे पर
तुमको सबसे पहके अंदर भेजा।
दोस्तों के दुश्मनो का यार सावित कर मुझे
मैं अगर गद्दार हु तो गद्दार सावित कर मुझे।
किस तरह होगा फ़क़ीरों का गुजारा सोचे
उसे कहना वो एक बार दुबारा सोचे।
ऐसा मौका हो की बस एक ही बच सकता हो
और उस वक़्त एक सक्स तुम्हारा सोचे।
ऐसा मौका को बस एक ही बच सकता हो
और उस वक्त भी एक शख्स तुम्हारा सोचे।
कैसे मुमकिन है उसे और कोई काम न हो
कैसे मुमकिन है की वो सिर्फ हमारा सोचे
जो चंद रोज मैं घर में कमाई देने लगा
तो खानदान को अच्छा दिखाई देने लगा।
लगान भर के आया ही था अपने घर
की नोहा मर्ग का मुझको सुनाई देने लगा।
खुद ख़ुशी तो बस एक बहाना था
ज़िंदगी को सबक सिखाना था।
वो मेरी आखड़ी मोहब्बत थी
मुझको हर हाल में निभाना था।
मुझको उसकी एक खूबी याद है
छोड़के जाने में वो उस्ताद है
ज़ाहिद बशीर के बेहतरीन शायरी
आप अगर मिलने मिलाने पे यकीं रखते हैं
एक मुलाकात अकेले में कहि रखते हैं।
ये झुकाव मोहब्बत का ही है रद्दे अमल
बस यही सोच के सजदे में ज़बी रखते हैं।
साथ चलने का भी सामान नहीं होता है
कैसा मुफ्लिश है परेशान नहीं होता है।
मशला आपका ये है भरी महफ़िल में
आप होते हैं मिया ध्यान नहीं होता है।
गुफ्तगू में जब यंहा पर मेरी बारी आएगी
शोर बढ़ जाएगा और आवाज़ थोड़ी आएगी
तेरी बाहो के अलावा मैं कहि सोता नहीं
किसको घर से दूर रहकर निंड पूरी आएगी।
रो रो के अब तू अपनी सफाई न दे मुझे
अँधा नहीं हु मैं की दिखाई न दे मुझे।
कुछ पता ही नहीं चल रहा है ज़िंदगी
किस तरफ जा रही है ,
तेरा घर किस तरफ है मगर ये गली
किस तरफ जा रही है
एक चेहरा अचानक चमकने
लगा है मजाफ़ात में
चाँद को भी नहीं पता चांदनी
किस तरफ जा रही है।
बाग़ से कुछ ताल्लुक हमारा भी था
अब नहीं है तो क्या
जानते हैं ये फूलो भरी टोकड़ी
किस तरफ जा रही है
वर्णा एक हजूम था दिल दरवाजे पर
तुमको सबसे पहले अंदर भेजा है
साड़ी रात लगाकर उस पर नज्म लिखी
उसने बस अच्छा लिखकर भेजा।
कल दोस्त को अपना हाल सुनाया था
उसने मुझे तुम्हारा नंबर भेजा है।
जो तेरे जैसा नहीं लग सकता वो हमे
अच्छा नहीं लग सकता
तूने दिवार अजब खेचि है
कहि दरवाजा नहीं लग सकता।
इसरार अगरचे मैंने ज़्यादा नहीं किया
तूने भी मेरे दिल को कुशादा नहीं किया।
फिर क्यों लगाए तुमसे उम्मीद विसालो हिज्र
तुमने तो ऐसा कोई वादा नहीं किया।
zahid bashir poetry ,ham bhi gaon mein sham ko baitha karte the
हरेक को करता हु सुमार अपनी जगह पर
तू अपनी जगह पर है तो यार अपनी जगह पर।
मैं खुश हु की तू देखने आया है दमे मार्ग
माँ बाप भाई बहन का प्यार अपनी जगह पर
बांटता चला जाता है तेरे हुस्न का लंगर
बनती चली जाती है कतार अपनी जगह पर
मैं देख तो सकता हु तुझे छू तो नहीं सकता
होश अपनी जगह पर है खुमार अपनी जगह पर
इस दिल से निकलती हुयी चाहत पे नजर रख
कब बैठता है गरदोजूबार अपनी जगह पर
काम लेता है मेरा दोस्त रियाकारी से
वो मेरे सामने रोया भी अदाकारी से
सोचना क्या है अभी दिल में चले आये हजूर
इश्क़ में काम नहीं चलता समझदारी से।
इस तरह तंग न हो हाथ किसी बेटे का
की परेशान हो वो बाप की बिमारी से
उसके हाथो में चमेली है तो जुरो में गुलाब
ऐसा ज़ेवर नहीं मिलता किसी अलमारी से।
हम कहि वक़्त पे एक साथ न पहुंचे ज़ाहिद
मैं परेशान हु उस शख्स की तैयारी से ,
उसके जुते भी नहीं आते जितने पैसो में
यार हमारा घर चलता है इतने पैसो में
इंतिहाई पास बल्कि सात से जाने दिया
आखड़ी मौका भी हमने हाथ से जाने दिया।
Top 10 sher of Zahid Bashir
,तू दुश्मनो से मिलता है और मुझसे भी
सदी प्यार है तेरी मुनाफ़िक़त से मुझे
तबज्जो काम पे देता की तेरी आँखों पे
सो हाथ धोने पड़े हैं मुलाजमत से मुझे
यकीं कीजिये उस्ताद आदमी था कोई
हरा गया है जो मेरी मुसारबत से मुझे
उसके खिलाफ लव्ज न निकले जुबान से
वो शख्स आज भी प्यारा है मुझको जान से ,
खुसबू बिखेड़ति हुयी ये कास्मि की बेल
आयी मेरी मकान पे तेरी मकान से ,
सब मसल्लों को भूल कर मैं दोस्त के साथ
लम्बे सफर पे चल पड़े हैं इत्मीनान से।
गुफ्तगू में जब यंहा पर मेरी बारी आएगी
शोर बढ़ जाएगा आवाज़ थोड़ी आएगी
तेरे बाहो के अलावा मैं कहि सोता नहीं
इसको घर से दूर रहकर नींद पूरी आएगी
काश इस खेल में तू मेरे बराबर आता
मैं तुझे चुम के मैदान से बाहिर आता
तुम बहुत पहले पलट आये मेरे सहरा से
दस्त को पार जो करते तो समंदर आता
क्या अज़ाब लोग हैं घर वाले अज़ाब बोलते हैं
हम अगर वक़्त पे पहुंचे भी तो सब बोलते हैं
ham तेरे बाद भी खामोश रहा करते हैं
हम तेरे सामने बैठे भी तो कब बोलते हैं।
जाग कर भी वही तेरा खाब
जागने में मजा न सोने में
दिल पर प्यार की मोहर लगा के भेजा है
देर से आज उसे हमने घर भेजा है।
साथ चलने का भी सामन नहीं होता है
कैसा मुफ्लिश है पदेसांन नहीं होता है
मासला आपका ये है भरी महफ़िल में
आप होते हैं मिया ध्यान नहीं होता है।
बैन मर्ग पे होता है हमारे यंहा भी
लेकिन मेरी जान सज धज के नहीं होता है