Munawar Faruqui Shayari in hindi -इस पोस्ट में मशहूर कॉमेडियन मुनावर फारुखी के बेहतरीन शायरी शेयर किया है –munawar faruqui best shayari on bigboss 17 -munawar faruqui shayari itna kuch mila hai-Munawar Faruqui Shayari poetry Instagram-Ek shayari likhi hai kabhi miloge to sunaunga-मुनावर फारुखी शायरी पोएट्री इन हिंदी।
मुन्नवर फारुखी एक मशहूर स्टेन्डप कॉमेडियन रेपर है जो हाल ही में उन्होंने बिगबॉस 17 के विनर भी हैं ,जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय भी हो गए है ,वे फेमस टीवी सो लोकउप के विनर भी रह चुके हैं मुन्नवर के अपने कॉमेडी शो के कारन काफी कॉन्ट्रोवर्सी भी रह चुकी है ,उनके शायरी लोगो के द्वारा बहुत ज्यादा पसंद किया जाता है अगर आप मुन्नवर फारुखी को पसंद करते हैं तो उनका ये बेहतरीन शायरी कलेक्शन बहुत पसंद आएगा।
munawar faruqui shayari on love
खो दी जन्नत मैंने अब सुकून की चाह नहीं ,
ठोकर बिना मंजिल ले चले वो राह नहीं ,
दगा है सब में मैं लौट के जाउ कहाँ।
घर पे इंतज़ार करने वाली माँ नहीं।
रुस्वा तो मैं तुझे भी कर दू ,
लेकिन बांकी मुझमे लिहाज़ है ,
पूरा शहर मेरा मुरीद बस तेरा
मोहल्ला मेरे खिलाफ है।
वो बहती नदी सी थी रुका हुआ हु मैं ,
वो मुकमल सी थी टूटा हुआ हु मैं ,
उसके आगे मेरा कोई वज़ूद ही नहीं है ,
ख़ज़ाने सी है वो लुटा हुआ हु मैं।
रौशनी से वंहा तेरी चाँद रूठा बैठा है।
मैंने तुझे माँगा जब टूटता हुआ तारा देखा है ,
तेरी जैसी महक यंहा किसी फूल में नहीं,
यकींन कर मेरा मैंने हर बाग़ देखा है।
बादशाओं को सिखाया है कलंदर होना ,
आप आसान समझते हो क्या मुन्नवर होना ,
दिनभर हंसती सकल लेकर चलना ,
रोते सजदों में और गीले तकियो पे सोना।
वो मेरी तरह तुझे पुकारता है क्या ,
वो इंतज़ार में सामे गुजारता है क्या ,
माना वो रखता है तुझपे नज़र ,
मेरी तरह नज़र उतारता है क्य।
new munawar faruqui shayari on bigboss 17
तेरी जैसी मैं ढूँढू मिलती नहीं है ,
घडी वक्त की तेरे बिना हिलती नहीं है
ये साड़ी लुटा दी मुझपे खुद को ,
तेरी आगे मेरी चलती नहीं है ,
खुवाब तेरा देखना चाहु पर
रात भर न सो सकू ,
तू है नहीं सामने जो हाथ पकड़कर
रो सकू।
ये आँखे कैसे पढ़ लेती हो
दर्दो में सबर लेती हो ,
बेचैन है साँसे मेरी वादे कैसे कर लेती हो।
तू चाहे मैं बनु पहला प्यार तेरा ,
मैं मैखानो की शराबी तू न पहला प्यार मेरा ,
है लूट चूका पूरा बाजार मेरा ,
जो बेकरार खुद तुझे क्या करार देगा।
तू कहे तो एक कतरे में ही बाह जाऊं ,
बरना कोई तूफ़ान भी मुझे नहीं गिरा सकता ,
खुदा सुकून दे मेरे इस ज़हन को ,
मैंने गैर हंसाकर अपने रुलाएं हैं।
तुझे रखे महफूज़ दुनिया से दूर ,
तेरे नखड़े है मुझको कुबूल
तू कहानियों की हूर सितारों से दूर
munawar faruqui shayari on love
मेरे मसले मेरी समझ के बाहर है ,
खवाबो से दोस्ती निंदो से दुश्मनी है ,
कोई ले आओ उस परिंदे को जो उसके
शहर जाता हो युही पड़ा है वो खत
जो लिखा कई दिनों से है।
किसी ने मोहल्ले किसी ने मकान बदले हैं
किसी ने लहजे किसी ने लिवास बदले हैं ,
मैंने देखा है बुरे वक्त में लोगो को ,
किसी ने खुदा तो किसी ने आसमान बदलें हैं।
हमको सूरज पे चलने को कहके ,
खुद चाँद पे चलते हैं ,इनका रंग
बदलने का जो हुनर है इसे देखकर
गिरगिट भी जलते हैं।
मोहब्बत का जाम पिलाने वाला साकी हु मैं ,
लबो पे हंसी लाने के लिए अकेले काफी हु मैं।
कॉमेडियन मुन्नवर फारुखी शायरी इन हिंदी
कुछ लोग एक गलती पे रिस्तो के
खिलाफ कर देते हैं,
लेकिन जिनका दिल बड़ा होता है ,
वो माफ़ कर देते हैं
कितने दिल दुखाओगे बस करो
ये काला काजल लगाना बस करो
एकबार अगर देख ली जुल्फे खुली किसी ने
मर जाएंगे कई सुनो बाल बाँध लो।
बादशाहो ने सिखाया कलंदर होना
तुम आसान समझते हो क्या मुनव्वर होना ,
दिन भर हंसती सकल लेकर चलना
रोते सजदों में और गीले तकियो में सोना।
मेरा ज़िक्र बंद करो मैं कोई आयत नहीं हु ,
दुनिया फरेबी मैं खुद वफ़ा के लायक नहीं हु बन ,
सवाल चलेंगे तो हाथ इनके काँपेगे।
वो था तूफ़ान जो दस्तक देकर आया था
अकेला था लगा था लस्कर लेकर आया था ,
वो पूछेंगे किसकी है ये लोहे जैसी लेगेसी
कहना वो डोंगरी वाला आग लेकर आया था।
मेरे दर्दो का गुनाह तेरे पे है
उल्फत का मलाल उसके चेहरे पर है ,
बदल दिया था रास्ता मुझे देखकर
आज दुनिया भर की निगाह मेरे पर है।
अपने बचपन को सिक्को में ही तोल आया ,
अपनी राहतो को पीछे कहि छोड़ आये ,
खुशबु सब में थी मैं पहचानता नसल कैसे
गया फूल लेने कांटे सारे तोड़ आये।
सर पर ज़िम्मेदारी खुवाईसो को अपने मारा
जताके कहके सब तो लिया न शहारा।
मुनावर फारुखी शायरी
बिन बताये उसने क्यों ये दूरी कर दी ,
बिछड़कर उसने मोहब्बत ही अधूरी कर दी ,
मेरे मुकद्दर में गम आये तो क्या हुआ ,
खुदा ने उसकी खुवाईश तो पूरी कर दी।
नहीं कोई वाकिफ कितना दर्द लिए चलता हु ,
टूटता हर सुबह जब आईना देखता हु
झूम के चलता हु हंस के मिलता हु
मैं रोज ऐसे कितनो को दगा देता हु ,
कभी मिलो तो सुनाऊँ
तेरी सीरत साफ़ शीशे की तरह
मेरे दामन में दाग हजारो हैं ,
तू नायब किसी पत्थर की तरह
मेरा उठना बैठना बाजारों में है।
तेरी मौजूदगी का अहतराम कर भी लू ,
जब तू होगा रु बरु मेरी ज़ज़्बात कहाँ छुपाऊ
मेरा खुवाब इन पहाड़ो से बड़े हैं ,
तूफ़ान में कागज़ की कस्ती लिए खड़े हैं ,
ये कैसे रोकेंगे आसमान से आनेवाले मेरे रिस्क को ,
मैं ज़मीं पर हु और ये पर काटने चले हैं।
बता दो बाजार कोई जहां मुझे वफ़ा मिले
यंहा मैं बेचू खुशु और गम साला नफ़ा मिले।
बेचता नहीं ज़मीर खुदा के खौफ से
वर्णा सौदे करने वाले कई दफा मिले।
Munawar Faruqui poetry status image
एक उम्र लेकर आना
मै खाली किताबे ले आऊंगा ,
तोड़कर लाने ले वादे नहीं
मैं अपनी कलम से सितारे सजाऊंगा
इस ज़मी पे कोई ख़ास नहीं है मेरा
तू एक बार कबुल कर
मैं अपने गाँव आसमान से महगाउंगा
मेरे सब्र की इंतिहा पे सक कैसा
मैंने तेरे आने पर ताउम्र लिखी है ,
कई रात से सोया हु अंधेरो में
तुम ज़रा सा नूर ले आओगे
मेरे तकिये गीले हैं आंशुओ से
क्या तू मुझे अपनी गोद में सुलाओगे ,
सुना है बाग़ है तेरे आँगन में
मेरे ला हसल बचपन को वो झूला दिखाओगे
मैंने खोया है अपने हर प्यारी चीज़ को
मैं अपनी किस्मत फिर भी आज़माऊँगा।
वो मुझे दूर करने की ज़िद लिए बैठा है ,
साथ चलना नहीं है मंजिल का वादा कर बैठा है ,
मुझे मोहब्बत है समंदर की उन लहरों से ,
और मेरा महबूब पहाड़ो को दिल दिया बैठा है।
वो जुल्फों से दिन में रातें करती है ,
उनकी आँखे ताउम्र की वादे करती है ,
भरती है आहे हमारी आवाज़ को छूकर
वो बस मुस्कुरा के बरसा के करती है।
best Munawar Faruqui poetry, Shayari
मैंने गफलत में अपने
सपने जलाये हैं ,
दर्दो को जैसे
मैंने यंहा दावत पे बुलायें हैं।
खुदा सुकून दे मेरे जहन को
मैंने गैर हँसाकर अपने रुलाये हैं ,
मौत मुकम्बल मैं डरने वाला नहीं हु
हक है मैं लड़ने वाला नहीं हु
तालियों से जब मैं भर न दू स्टेडियम
कसम खुदा की मैं मरने वाला नहीं हु।
तू बैचैन नहीं मुझे चैन नहीं
तुझे ज़रूरत नहीं मुझे कोई और ज़रूरत नहीं
एक आरसे के वाद की है मोहब्बत किसी से
तुझे कदर नहीं मुझे सबर नहीं।
मशरूफ हो तुम भी
मशरूफ हैं हम भी
तुम्हे खुद से फुर्सत नहीं
हमे तुम से फुर्सत नहीं
सपने देखता पर चैन से मैं सोया कब था
हँसा के भुला मैं आखड़ी बार कब था
आ जाती महफ़िलो में रौनक मेरे नाम से ही
इतना नायब हु आज दाम कोई लगा नहीं सकता ,
मेरी बचपन से ही लगा एक सर्त है
फरीद सबसे हु आवाज़ में ही तर्क है
फर्क है चढ़ता नहीं मैं भीड़ लेके
अकेला हक लेके पैदा हुआ रिड लेके
वाकिफ है सब तो फ़साने दर्द का गाउ क्या ,
ज़हन में ग़ालिब तो फ़साना दिल का लाऊँ क्या
वो कहते चुभते मेरे लफ्ज़ उनको बहुत
चीर देगी खामोशी चुप हो जाऊं क्या।
ek shayari likhi hai kabhi miloge lyrics
सुखी ज़मींन कहती मुझपे कब बरसोगे ,
पर मेरा वादा कर मिलने को तरसोगे
देते भीख बिछा मेरे पैरो में मखमल
मैं रोकू ये कहके जुड़ा हु मैं फरसे से।
इतना कुछ मिला है खुदा का लाख सुक्रिया
अमल कुछ ख़ास नहीं मेरा आखिर फिक्र क्यों करू ,
मुझे लगता है उसे पसंद है मेरा टूटना
मुसिवते भेजता है ताकि मैं उसका ज़िक्र करू।
कुछ तो तू भी कह दे
खामोशी तेरी आती है तूफ़ान लेके ,
कस्ती को किनारे दे या फिर डूबा दे ,
तो मुझे तेरी पनाह मिले ,
जब लौटेगी तो इंतज़ार देदे ,
राते कटती नहीं दिन भी
इम्तिहान लेते हैं ,
ये मेरे हाल दिल की मुझे ज़िम्मेदार कहते हैं ,
ए बेखबर मैं ज़िंदा हु तेरे आशे में।
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